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10 वर्ष के बाद मिली अपने परिवार से गायब युवती... मानव तस्करी द्वारा दिल्ली लाया गया था...... नई दिल्ली राजधानी दिल्ली में पिछले दस वर्ष से ह्यूमन ट्रैफिकिंग के जरिये दिल्ली लाई गई युवती को गैर सरकारी संघठन मीनाक्षी परिवार ने 10 वर्ष बाद उसके घर ओडिशा राज्य में परिजनों तक पहुचाया ।जी हाँ देश के बड़े बड़े शहरो में देश के ही अन्य छोटे बड़े राज्यो से गरीब बच्चों,नाबालिक लड़कियो,महिलाओ को महज चंद रुपयो की ख़ातिर मोका परस्त ऐजेंट्स खाने और काम का लालच देकर चंद रुपयो और शराब की बोतलों में दिल्ली मुंबई व् अन्य राज्यो में लाकर छोड़ देते है यहाँ उन्हें किसी प्लेस मेंट एजेंसी को दे दिया जाता है जो मोटी रकम लेकर उन्हें कोठी ,में या घर में घरेलू काम पर लगा देते है और बरसो तक उसकी मेहनत की गाढ़ी कमाई खाते है या फिर उन्हें जिस्म के बाज़ार में बेच दिया जाता है कुछ की किस्मत अच्छी होती है जो किसी अच्छे व्यक्ति के संपर्क में आकर थोड़ी बहुत अच्छी जिंदगी जीते है लेकिन ज्यदातर को तो यह तक नहीं पता होता वह कहाँ से आये है कोई उनका अपना है भी या नहीं। एक ऐसा ही वाक्या राजधानी दिल्ली में देखने को मिला जो ह्यूमन ट्रैफिकिंग के जरिये आये हुए लोगो के बारे में हकीकत ब्यान करता है साथ ही मानवता के प्रति समर्पित सच्चे समाज सेवियों की संवेदना और समाज के प्रति अच्छे कार्य करने की दृण इच्छा शक्ति को भी दर्शाता है। दरसल 5 नवम्बर 2016 को रानी बाग़ में रहने वाली मीनाक्षी मल्होत्रा को दिल्ली की जनक पूरी रेड लाईट के पास एक युवती मिली जिसकी उम्र तकरीबन 25 वर्ष की होगी वह भूख की वजह से वहाँ बैठी हुई थी लेकिन भीख नहीं मांग रही थी मीनाक्षी ने दो तीन बार उसे वहाँ ऐसे ही बैठे देखा था सो उन्होंने आखिर कार एक दिन उससे पूछ ही लिया की तुम कौन हो और क्या परेशानी है ।इसपर उस युवती ने अपना नाम आयशा बताया और कहाँ की वह कई दिन से यहाँ भटक रही है और भूखी है मीनाक्षी मल्होत्रा एक गैर सरकारी संघठन चलाती है और तकरीबन 600 सौ स्लम के बच्चे उनकी के माध्यम से लाभवान्तित होते है सो वह उसे अपने NGO मीनाक्षी परिवार के ऑफिस रानी बाघ में ले आई और नहला धुला कर खाना खिलाने के बाद जब उन्होंने आशा से पूछा तो सारी हकीकत का खुलासा हुआ।



युवती आयशा ने जो बताया वह वाकई में चौकाने वाला था जो ह्यूमन ट्रैफिकिंग से जुड़ा हुआ था और हकीकत ब्यान करता है। मीनाक्षी मल्होत्रा ने बताया की यह युवती तकरीबन 10 वर्ष पहले दिल्ली लाइ गई थी तब वह 17 वर्ष की थी जिसे एक महिला जिसका नाम आशा ने ओनी बताया है वह उसके समेत 5 लड़कियो को दिल्ली लेकर आई थी जिसमे से 3 लड़कियो को मुंबई बेच दिया गया एक को दिल्ली में ही कही भेजा गया जबकी आशा की तबियत थोड़ी खराब रहती थी सो इसे एक प्लेस मेंट सर्विस तेज़ी मैड सर्विस के ऑफिस में छोड़ दिया गया और वह वहाँ से चम्पत हो गई प्लेस मेंट सर्विस ने कई अलग अलग जगहों पर उसे घरेलू काम पर लगाया गया इसी बीच एक बुजुर्ग महिला के यहाँ भी इस युवती आशा को उनकी देख रेख करने के लिए रखा गया जहाँ उसने कई वर्ष गुजारे लेकिन कुछ दिन पहले बुजुर्ग महिला की मृत्यु हो जाने पर उसे वह घर छोड़ना पड़ा और जब वह उस प्लेस मेंट तेज़ी मेड़ सर्विस के ऑफिस पहुची तो पता चला की उस एजेंसी का वहां कोई भी अता पता नहीं है और न ही कोई कॉन्टेक्ट अब वह इस बड़े शहर में बिलकुल अकेली और डरी हुई थी और दर दर भूखी प्यासी ठोकर खा रही थी इसी बीच यह उन्हें मिली। प्रथम दृष्टा ही मीनाक्षी मल्होत्रा को पूरा मामला समझते देर नहीं लगी की यह मानव तस्करी से जुड़े हुए लोगो की शिकार हुई है अतः उन्होंने ठान लिया की इस युवती आशा को वह इसके घर पहुचयेगी उन्होंने अपनी एक टीम बनाकर उसकी काउंसलिंग की पर वह अपना पूरा पता भी नहीं जानती थी और न ही अपना पूरा नाम ही भूल चुकी थी बस इतना भर याद थी की वह ओडिशा के सुन्दर गड से कही से आई है और अपने घर जाना चाहती है ऐसे में मीनाक्षी मल्होत्रा और उनके संघठन के लिए यह किसी चुनोती से कम नहीं था पर उन्होंने हार नहीं मानी और संघठन की 2 अन्य महिला एवं एक वरिष्ट पत्रकार सहयोगी विक्रम गोस्वामी व् दो अन्य पुरष सहयोगियों से विचार विमर्श कर तुरंत बिना समय गवाएं आनन फानन में 9 नवम्बर को ही बाई रोड ही पूरी टीम के साथ आशा को लेकर कई सो किलोमीटर के सफ़र पर ओडिशा के लिए रवाना हो गई।

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ओडिशा के सुन्दर गड इलाका काफी बड़ा था लेकिन वहाँ के जुझारू पत्रकार साथी डंम्बरू जी एव मोहम्मद शब्बीर के साथ अन्य साथियो की मदत और अपनी अथक कोशिशो व् स्थानीय लोगो से पूछताछ कर आशा को कई जगहों पर घुमाने के बाद अंत में यह पता चला की ओनी नाम की एक महिला जो मानव तस्करी में जेल जा चुकी है इसी सुचना के आधार पर की आशा ने बताया की वह ओनी के घर के पास ही रहती थी सो ओनी के घर का पता लगाया गया और फिर बड़ी ही मुश्किल से एक के बाद एक तार जुड़ते गए और अंत तः11 नवम्बर की शाम आशा की बहन और जीजा का पता चला जो रानी बगीची सुन्दर गड में रहते थे काफी समय से आशा को ढूंढकर थक हार कर बैठ गए थे जब आशा उनसे मिली तो उनकी आँखों में आंसू छलक आये और मीनाक्षी मल्होत्रा की आँखों में संतोष की आखिर कार उनकी मेहनत सफल हुई तब जाकर पता चला की आशा का पूरा नाम आशा राऊत है और माँ का नाम फूलमती राऊत और पिता स्वर्गीय अखियाँ राऊत थे राऊत आशा राऊत के गायब होने के बाद से ही बड़ी बहन ने बताया उसने और पति सुनील कुल्लू ने काफी तलाश किया वह दिल्ली भी गए थे लेकिन वह नहीं मिली थी तत्पश्चात एसएसपी सुन्दर गड को सूचित कर आशा को उसके परिवार के सुपर्द कर दिया गया परिजन ने भी मीनाक्षी मल्होत्रा और उनके संघटन के लोगो को बहुत दुआए दी आशा राऊत अब घर पहुच कर ख़ुश थी लेकिन यहाँ आकर मीनाक्षी परिवार को कई बड़े खुलासे हुए की किस तरह से चंद पैसो के लिए खुद माँ बाप ही अपने जिगर के टूकडो को किसी अनजान के हवाले कर देते है और कैसे उनके आस पास गिद्ध की नजर गढ़ाये उनकी बेबसी और गरीबी रोटी की भूख को टारगेट कर छोटी छोटी लड़कियो बच्चों युवतियों को लालच देकर मानव तस्करी करते है जो फिर कभी अपने परिवार से नहीं मिलते यहाँ भी उन 5 लड़कियो में आशा इतनी खुसनसीब रही जो 10 वर्ष बाद ही सही पर मीनाक्षी परिवार NGO और मीनाक्षी मल्होत्रा के प्रयास से आज अपनों के बीच कई सो किलोमीटर सफर तय कर पहुच पाई है।13 नवम्बर को दिल्ली वापिस आई मीनाक्षी मल्होत्रा ने पत्रकारो को बताया की प्रशासन को इसके लिए एक कमैटी का गठन करना चाहिए जो ऐसे राज्यो में हो रहे मानव तस्करी के कारणों पता लगाकर परिवारो को चिन्हित करे और सरकार द्वारा आर्थिक सहायता प्रदान करे वही कमैटी और स्थानीय पुलिस ऐसे एजेंटो का पता लगाकर सलाखों के पीछे पहुचाये मीनाक्षी मल्होत्रा ने बताया की इस कमैटी में गैर सरकारी संघठनो के लोग पत्रकारो व् समाजसेवियों को होना चाहिए जिसकी अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज या मानव अधिकार आयोग से सेवा निर्वित अध्य्क्ष करे तभी मानव तस्करी पर अंकुश लग पायेगा। वही जिस तरह से मीनाक्षी मल्होत्रा एव उनके संघठन ने यह कार्य किया है वाकई में काबिले तारीफ है यदी हर संघठन और समाज के लोग अपना दायित्व निभाये तभी अवश्य ही मानव तस्करी ही नहीं समाज में व्याप्त अन्य बुराई भी स्वयं ही समाप्त हो जायेगी।